छोटे कामों से घृणा न करना, सुव्यवस्था को उत्पादक मनोरंजन मानना, खाली समय का उपयोग करना, आलस्य-प्रमाद को हावी न होने देना, काम को अधूरा न छोड़ना, सुसज्जा की अभिरुचि बढ़ाना जैसे अनेक ऐसे गुण परिवार में बढ़ते है, जो देखने में छोटे लगते है, पर इस प्रवृत्ति को पुनः प्रचलित करना चाहिये ।